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"पूरे यूरोप में एक भी कवि बिहारी की बराबरी नहीं कर सकता''

पूरे यूरोप में एक भी कवि बिहारी की बराबरी नहीं कर सकता" जो शीर्षक हमने लिया है वह सर जॉर्ज ग्रियर्सन का एक कथन है जो उन्होंने मध्यकालीन हिंदी कवि 'बिहारीलाल'  के लिए कहा है। बिहारीलाल का समय  संवत 1660 से संवत 1720 का है। ये जयपुर के मिर्जा राजा महाराज जयसिंह के दरबार में रहते थे। बिहारीलाल ने अपने जीवन काल में केवल एक काव्यग्रन्थ की रचना की जिसे 'बिहारी सतसई' कहा जाता है।  सतसई उस काव्यग्रंथ को कहते हैं जिसमें 700 छंद हों। 'बिहारी सतसई' में 713 दोहे हैं। इन दोहों के प्रारंभ होने की एक कहानी है।कहा जाता है कि जिस समय ये कवीश्वर जयपुर पहुँचे उस समय महाराज अपनी छोटी रानी के प्रेम में इतने लीन रहते थे कि राजकाज देखने के लिए महलों से बाहर निकलते ही न थे। इस पर सरदारों की सलाह से बिहारीलाल ने यह दोहा किसी प्रकार महाराज के पास भीतर भिजवाया-   नहिं  पराग  नहिं  मधुर  मधु नहिं  विकास  यहि   काल।   अली   कली    ही  सों   बँध्यों   आगे     कौन     हवाल।। (अभी तो कली खिली नहीं,न उसमें अभी सुगन्ध आयी है और न ही मीठा रस। हे भंवरे अगर तू इस कली से ही इतना बँध गया है,इसे